भीख में मिली किताब ने बनाया कार्टूनिस्ट
शुक्रवार, 9 अगस्त, 2013
जाने माने कार्टूनिस्ट और चित्रकार आबिद सुरती के कॉमिक किरदारों को तो हम हमेशा ही दुश्मनों से लड़ते हुए देखते हैं, मगर इस बार वे खुद एक ख़ास अभियान पर निकल पड़े हैं.
हर रविवार को यह मशहूर कलाकार मुंबई के टपकते नलों को ठीBBBक करते हुए देखे जा सकते हैं. आबिद सुरती इन दिनों पानी की बूंदें बचाने में लगे हैं.
1) बीबीसी से बातचीत में आबिद सुरती ने बताया कि पानी की ओर उनका खिंचाव बचपन से ही शुरू हो गया था.
उन्होंने बताया कि, “हमारे अपार्टमेंट में करीब 50 कमरे थे. पानी के लिए बस एHHक ही नल था. एक बाल्टी पानी के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता था.”
कार्टून बनाने का आइडिया
आबिद ने बताया कि उन्होंने सबसे पहला कार्टून तब बनाया जब वे स्कूल में थे. वे बताते हैं कि काफी गरीब होने के कारण मां-बाप उनकी पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पा रहे थे.
कॉपी किताबों और स्कूल फीस के लिए पैसों की जरूरत थी. फिर उन्हें कार्टून बनाकर पैसे कमाने का आइडिया आया.
आबिद ने इसी सिलसिले में एक रोचक किस्सा बताया. “वह द्बितीय विश्व युद्ध का समय था. सिपाही जहाज़ों से आते थे. जहाज़ के गोदाम से उन्हें मिनी ट्रेनें बड़े स्टेशन तक ले जाती थीं. हमारे जैसे कुछ गरीब बच्चे भीख मांगने के लिए उनकी ट्रेन के साथ-साथ दौड़ते थे. सिपाही ट्रेन की खिड़कियों से हमारे लिए कभी टॉफी, कभी सैण्डविच और कई बार किताबें भी, जैसे मिनी पॉकेट बुक्स फेंक दिया करते थे.”
उन्होंने आगे बताया, “एक बार किggghसी सिपाही ने ट्रेन से एक कॉमिक्स की किताब फेंकी. हम सारे झपटे. हमारी करीब 8-10 बच्चों की गैंग थी. किसी के हाथ में एक पन्ना आया, किसी के तीन. मुझे भी एक पन्ना मिला. वह मिकी माउस कार्टून का पन्ना था. तब मुझे मिकी माउस कार्टून का राज समझ में आया. उसका आकार, कल्पना, दृश्यों का चित्रण. मुझे लगा कि मैं यह कार्टून बना सकता हूं. बहुत आसान है.”
सबसे चर्चित कार्टून ‘बहादुर’
आबिद सूरती का कार्टून पहली बार अंग्रेजी अखबार, ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपा.
आबिद सुरती तब स्काउट के छात्र थे. उन लोगों को एक दिन ‘खड़ी कमाई’ करनी थी.
किसी बच्चे ने हाथ की बनी चीजें बेंची, किसी ने बूटपॉलिश की. मगर आबिद ने अपने बनाए कार्टून को बेचा. यह मौका उन्हें दिया भारतीय अंग्रेजी अखबार ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने. उनका कार्टून ‘बहादुर’ सबसे चर्चित रहा है. इसकी कSSल्पना उनके दिमाग में कैसे
2) आई. सुरती बताते हैं, “भारत आजाद हो चुका था. विदेशी चीजों का बहिष्कार जोरों पर था. तब कार्टून के क्षेत्र में हमारे पास फैण्टम, जादूगर मैण्ड्रेक जैसे पश्चिमी कॉमिक्स ही थे. टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक ने मुझे बुलाया और कहा, हमें इंडियन सुपर हीरो चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा, “तब डाकुओं की बड़ी दहशत थी. जैसे चरमपंथी आज हमारे लिए लाइलाज बीमारी बन चुके हैं, उसी तरह तब डाकू भारत के लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या थे. इसलिए मैंने एक ऐसा किरदार (बहादुर) रचा, जो डाकुओं को सुधारने का काम करता है. फिर उन्हें समाज की मुख्य धारा में वापस लाता है.”
बाल्टी भर पानी पर घमासान
आबिद सुरती आज एक क्लिक करेंसफल कार्टूनिस्ट हैं. उनके चाहने वालों की संख्या लाखों में है. मगर लोगों के नलों को ठीक करने का काम उन्हें कैसे सूझा.
वे बताते हैं कि जब कभी वे दोस्त से मिलने उनके घर जाते और एक भी नल टपकता देखते तो उन्हें बहुत बुरा लगता. महीने भर बाद जाने पर भी नल का वही हाल रहता. दोस्त बताते कि इतने ‘छोटे’ से काम के लिए कोई प्लंबर नहीं आना चाहता.
“तब डाकूओं की बड़ी दहशत थी. जैसे चरमपंथ आज हमारे लिए लाइलाज हो चुका है, ठीक वैसे ही उस समय डाकू भारत की सबसे बड़ी समस्या थे. ऐसे में मैंने एक ऐसा किरदार (बहादुर) रचा, जो डाकुओं को सुधारने का काम करता है और उन्हें समाज की मुख्य धारा में वापस लाता है.”
आबिद सूरती, ‘ड्रॉप डेड’ के संस्थापक
कभी एक बाल्टी पानी के लिए घमासान झेल चुके आबिद को पानी के एक बूंद का भी बेकार जाना गंवारा नहीं था. उन्होंने तय कर लिया था.
बस एक प्लंबर की जरूरत थी. मगर पैसे कहां से आते, यह समस्या भी थी.
वे कहते हैं कि संयोग कुछ ऐसा हुआ कि उसी समय उन्हें उन्हें साहित्य के लिए लाइफटाइम अवॉर्ड मिला. इसके साथ उन्हें एक लाख रुपए मिले.
इन पैसों के खत्म होते ही फिर से महाराष्ट्र सरकार की तरफ से 50 हजार रूपए का लाइफटाइम अवॉर्ड मिला. इस तरह काम का यह सिलसिला चल निकला.
3 पानी की एक-एक बूंद बचाने के लिए उन्होंने ‘ड्रॉप डेड’ नाम से एक संस्था भी बनाई है.
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/08/130808_abid_surati_drop_sk.shtml